ममता बनर्जी के सियासी वारिस? अभिषेक बनर्जी के इर्द-गिर्द सिमटता चुनाव

 

स्टोरी हाइलाइट्स

  • ममता के भतीजे अभिषेक बीजेपी के निशाने पर
  • अभिषेक की सियासत ममता से काफी अलग है
  • क्या अभिषेक टीएमसी के भविष्य के नेता बन रहे

पश्चिम बंगाल की सियासत में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी इन दिनों सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष तक के बीच चर्चा के केंद्र में बने हुए हैं. गृहमंत्री अमित शाह ‘बुआ-भतीजा’ कहकर ममता सरकार को घेरने में जुटे हैं. शाह ने बंगाल दौरे पर कहा था कि मोदी सरकार गरीब कल्याण के लिए है, लेकिन ममता सरकार भतीजा कल्याण के लिए है. टीएमसी का केवल एक ही नारा है, भतीजा बचाओ, भतीजा कल्याण. टीएमसी के मन में किसी अन्य का कल्याण नहीं है. वहीं, इस युवा नेता को टीएमसी में भावी नेता और ममता बनर्जी के सियासी वारिस के तौर पर देखा जा रहा है. यही वजह है कि बंगाल की सियासी लड़ाई अभिषेक बनर्जी के इर्द-गिर्द सिमटती दिख रही है.

ममता बनर्जी के भाई अमित बनर्जी और उनकी पत्नी लता के बेटे अभिषेक बनर्जी को मुख्यमंत्री के सबसे खास लोगों में से एक माना जाता है. अभिषेक बनर्जी का जन्म 7 नवंबर 1987 को हुआ. कोलकाता के नाव नालंदा स्कूल में शुरुआती पढ़ाई के बाद अभिषेक बनर्जी ने दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ प्लानिंग एंड मैनेजमेंट (IIPM)से बीबीए और एमबीए की डिग्री ली. 

ममता के साये में पले-बढ़े अभिषेक

33 साल की उम्र पार कर चुके अभिषेक बनर्जी किसी छात्र आंदोलन से नहीं निकले बल्कि अपनी बुआ ममता बनर्जी की राजनीतिक छत्रछाया में पले-बढ़े हैं. इतना ही नहीं ममता की उंगली पकड़कर लगातार सियासी बुलंदियों की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं. दक्षिण 24 परगना जिले के डायमंड हार्बर से लगातार दूसरी बार सांसद बने अभिषेक बनर्जी इस बार के बंगाल चुनाव में बीजेपी के निशाने पर हैं.

बंगाल में ममता बनर्जी लेफ्ट के सियासी किले को ध्वस्त कर सत्ता पर काबिज हुईं तो उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी ने भी सियासत में कदम रखा. टीएमसी के दिग्गज नेता रहे सुवेंदु अधिकारी को नियंत्रण में रखने के लिए ममता बनर्जी ने साल 2011 में टीएमसी में युवा नाम का संगठन बनाया था और अभिषेक बनर्जी को उसका इंचार्ज बना दिया था. 

अभिषेक बनर्जी ने टीएमसी के यूथ संगठन को एक कॉर्पोरेट संस्थान की तरह चलाया था, जिसका नतीजा था कि बड़ी संख्या में युवाओं को पार्टी का मेंबर बनाया गया. उसी साल ममता ने सुवेंदु अधिकारी की जगह अभिषेक बनर्जी को टीएमसी यूथ विंग का अध्यक्ष बनाया. इसके बाद अभिषेक का टीएमसी में प्रभाव, कद और भूमिका पिछले कुछ सालों में बढ़ा है. 

अभिषेक को लाने में मुकुल रॉय की भूमिका

अभिषेक बनर्जी को टीएमसी में अहम भूमिका में लाने की ममता बनर्जी को सलाह मुकुल रॉय ने दी थी. इसी के बाद ममता ने उन्हें चुनावी राजनीति में उतारा, लेकिन आज वही मुकुल रॉय टीएमसी छोड़कर बीजेपी में चले गए. 2014 में सोमेन मित्रा के इस्तीफे के बाद खाली हुई डायमंड हार्बर संसदीय सीट पर पार्टी ने अभिषेक को चुनाव लड़ाया. अभिषेक बनर्जी चुनाव जीत गए और 26 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के सांसद बने और 2019 में दूसरी बार इसी सीट से चुने गए.

अभिषेक का पार्टी में कद जैसे-जैसे बढ़ा है, वैसे-वैसे पार्टी के दिग्गज नेता ममता से दूर होते गए. अभिषेक ने टीएमसी में उन नेताओं के पर काटे, जिनकी महत्वाकांक्षाएं ‘पार्टी से ज्यादा’ हो रही थीं.  इसमें मुकुल रॉय, सुवेंदु अधिकारी और सौमित्र खान जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं. इस सबकी वजह से पार्टी के वरिष्ठ नेता भी खफा बताए जाते हैं, जो मानते हैं कि अभिषेक राजनीतिक उठापटक से नहीं गुजरे हैं और उन्हें पावर थमा दी गई है. सुवेंदु अधिकारी ने साफ तौर पर अभिषेक बनर्जी पर पार्टी हाईजैक करने का आरोप लगाया था. 

अभिषेक के चलते पीके को मिला चुनावी कैंपेन

2019 के लोकसभा चुनाव में अभिषेक बनर्जी को टीएमसी के कैंपेन की अहम जिम्मेदारी मिली थी. हालांकि, वो अपनी सीट बचा ले गए थे, लेकिन पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. टीएमसी की सीटें आधी हो गई थीं.  इस बड़े सियासी नुकसान से उबरते हुए अभिषेक बनर्जी के कहने पर ही ममता ने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए हायर किया. 

प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी आई-पैक ने टीएमसी और राज्य सरकार के अंदर सभी संगठन और ऑपरेशनल नियंत्रण ले लिया. इस वजह से अभिषेक बनर्जी की जुबान से निकली बात पार्टी में आखिरी बन गई. प्रशांत किशोर और उनकी टीम के चलते पार्टी के नेताओं को साइडलाइन कर दिया. चुनावों के नजदीक आने पर पार्टी ने जिलों में ऑब्जर्वर के तौर पर मौजूद वरिष्ठ नेताओं को हटाया और हर जिले में एक अलग पार्टी कमेटी बनाई गई. इन कमेटियों को एक केंद्रीय कमेटी देख रही थी और इनका नियंत्रण अभिषेक के पास था.

ममता बनर्जी बनाम अभिषेक बनर्जी 
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अभिषेक का लाइफस्टाइल और व्यक्तित्व एक दूसरे से बिलकुल अलग है. ममता जहां कम से कम संसाधनों के इस्तेमाल के लिए जानी जाती हैं. वहीं, अभिषेक साउथ कोलकाता के बड़े घर में रहते हैं, सुरक्षा कमांडो से घिरे रहते हैं और चमचमाती बड़ी गाड़ियों में चलते हैं. ममता बनर्जी आज भी आपको पैदल मार्च करती दिख जाएंगी, लेकिन अभिषेक बनर्जी नजर नहीं आएंगे. अभिषेक अपने क्षेत्र डायमंड हार्बर में हर साल एक बड़ा स्पोर्ट्स टूर्नामेंट कराते हैं. 

ममता बनर्जी 2012 में अभिषेक की दिल्ली में हुई शादी में शामिल नहीं हुई थीं. अभिषेक की शादी काफी बड़े स्तर पर हुई थी. अभिषेक की शादी रुजीरा बनर्जी से हुई थी. हालांकि, कहा जाता है कि ममता बनर्जी अभिषेक बनर्जी की दोनों बेटियों से काफी करीब हैं. ममता बनर्जी के अलावा टीएमसी में वो एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर का उपयोग करते हैं. वहीं, अभिषेक बनर्जी एक काबिल मैनेजर के तौर पर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने में कामयाब रहे, पर भी उन्हें ममता की तरह जनता के नेता के रूप में खुद को स्थापित नहीं कर पाएं.



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